4.  अनजाने में  (अजान्ते)

उस दिन ऑफिस में तनख्वाह मिली।

घर लौटते हुए सोचा, उसके लिए एक नाईटी खरीदकर लेता चलूँ। बेचारी बहुत दिनों से कह रही है।

इस दुकान उस दुकान से ढूँढकर कपड़ा खरीदने में प्राय शाम ढल गयी। इधर खरीदकर निकला, उधर बारिश भी शुरू हो गयी। क्या करता- रूकना पड़ा। बारिश धीमी होने पर नाईटी को बगल में दबाए छाता तानकर मैं चल पड़ा। चौड़े रास्ते तक ठीक आया। उसके बाद ही गली थी, वह भी अॅंधेरी।

गली से मैं अन्यमनस्क होकर सोचते हुए जा रहा था- बहुत दिनों बाद आज नयी नाईटी पाकर उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहेगा। आज मैं-

उसी वक्त अचानक एक आदमी मेरे ऊपर आ गिरा। वह भी नीचे गिरा और मैं भी गिर पड़ा- कपड़ा कीचड़ में लथपथ हो गया।

मैंने उठकर देखा, वह आदमी तब तक उठा नहीं था- उठने का उपक्रम कर रहा था। मारे गुस्से के मेरा सर्वांग जल उठा। मारा एक लात।

‘‘सूअर कहीं के, रास्ता देखकर चला नहीं जाता?’’

मार खाकर वह फिर गिर पड़ा, लेकिन कोई जबाब नही दिया उसने। इससे मुझे और गुस्सा आया- और मारने लगा मैं उसे।

शोरगुल सुनकर पड़ोस के घर का एक दरवाजा खुला। लालटेन हाथ में लिए एक सज्जन ने बाहर आकर पूछा, ‘‘क्या बात है भाई साहब?’’

‘‘देखिये ना साहब- रास्केल ने मेरा इतना कीमती कपड़ा खराब कर दिया। कीचड़ में लथपथ हो गया एकदम। रास्ता चलना भी नही आता, सीघे मेरे कॅंधे पर आ गिरा- ’’

‘‘कौन- वो? ओह, रहने दीजिये साहब, माफ कर दीजिये, उसे और मत मारिये। वह बेचारा अॅंधा, गॅंूगा भिखारी है, इसी गली में रहता है- ’’

मैंने उसकी ओर देखा, मार की चोट से वह बेचारा काँप रहा था- शरीर कीचड़ में सना हुआ- और मेरी तरफ कातर भाव से अँधदृष्टी उठाकर दोनों हाथ जोड़ रहा था।